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नए जमाने की नई कलम से....................

MeeRa ( Pooja) हिंदी साहित्य वेबदुनिया का नया प्रकाशन
चाँद के साज पर गाती रही |
मैं तुुझे धड़कनो  में समाती रही ||


चाँद के साज पर रात गाती रही ,
मैं तुझे धड़कनो में समाती रही |

तेरी यादों में जो हम खो जाते है ,

तो खुद से ही खुद दूर हो जाते है |

तेरे होतो की ये जो हंसी है सनम ,
मेरे दिल को मुझि से चुराती रही |

चाँद के साज पर रात गाती रही ,
मैं तुझे धड़कनो में समाती रही |

मेरी आंखों ने जो ये नजाकत करी,
मेरी ही जिंदगी की ये आफत बनी |
मेरे ख्वाबो में जो एक चेहरा छुपा,
में उसे इस जंहा से छुपाती रही |

चाँद के साज पर रात गाती रही ,
मैं तुझे धड़कनो में समाती रही |

तेरे चेहरे में  ये जो छुपा राज है, 
इस बात पर चाँद नाराज है |
तेरे बांहो के सागर में खो जाने को ,
खुद को मे दरिया बनाती रही |

चाँद के साज पर रात गाती रही ,
मैं तुझे धड़कनो में समाती रही |
नए जमाने के युवा साहित्यकार की ओर अग्रसर मीरा ( पूजा )की बहुत ही अनुपम रचना जो की आपकी पहली रचना है और हिंदी साहित्य वेबदुनिया पर पहला प्रकाशन है |
हम आपके बहुत बहुत आभारी है जो अपने हमे प्रकाशित करने की अनुमति दी | हिंदी साहित्य वेबदुनिया आपको  धन्यवाद देता है | और आपकी ऐसी ही रचनाए इस पर प्रकाशित करने के लिए हमे अनुगृहीत करे |



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